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Udio Pankh Pasar (उड़ियो पंख पसार)
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प्रश्नोत्तर सीरीज के अंतर्गत पुणे में दी गईं दस OSHO Talks
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श्रद्धा के पंख
पृथ्वी को हमने नरक ही तो बना लिया है, नरक से बदतर बना लिया है। और सब इस पूरी विकृति का कारण--सुबह हो गई और हम जागते नहीं।
‘भोर भये परभात, अबहिं तुम करो पयानी।’
अब वक्त आ गया कि तुम चल पड़ो। उठो, यात्रा करो! कौन सी यात्रा? अंतर्यात्रा! मनुष्य होने की यात्रा।
अभी तुम मनुष्य केवल नाममात्र को हो। बीज-मात्र हो मनुष्य के। इसे वृक्ष बनाना है। वसंत आ गया और तुम बीज की तरह ही पड़े रहोगे? फूटोगे नहीं? अंकुरित नहीं होओगे? पल्लवित नहीं होओगे? फिर फूल कैसे लगेंगे? फिर गंध कैसे आकाश में उड़ेगी?
ओशो
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