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Ami Jharat Bigsat Kanwal (अमी झरत, बिगसत कंवल)
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दरिया-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं चौदह OSHO Talks
Details
‘सदगुरु के शब्द तो वे ही हैं जो समाज के शब्द हैं। और कहना है उसे कुछ, जिसका समाज को कोई पता नहीं। भाषा तो उसकी वही है, जो सदियों-सदियों से चली आई है—जराजीर्ण, धूल-धूसरित। लेकिन कहना है उसे कुछ ऐसा नित-नूतन, जैसे सुबह की अभी ताजी-ताजी ओस, कि सुबह की सूरज की पहली-पहली किरण! पुराने शब्द बासे, सड़े-गले, सदियों-सदियों चले, थके-मांदे, उनमें उसे डालना है प्राण। उनमें उसे भरना है उस सत्य को जो अभी-अभी उसने जाना है—और जो सदा नया है और जो कभी पुराना नहीं पड़ता।’-ओशो
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