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Dhyanyog: Pratham Aur Antim Mukti (ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति)
₹380.00
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ओशो द्वारा दिए गए ध्यान-प्रयोगों एवं ध्यान पर दी गईं OSHO Talks के अंशों का संकलन।
ISBN-13: 978-81-7261-325-9
No. of Pages: 284
Cover: HARD COVER
Details
"‘और अब दुनिया में वर्षों और जन्मों तक चलने वाले योग नहीं टिक सकते। अब लोगों के पास दिन और घंटे भी नहीं हैं। और अब ऐसी प्रक्रिया चाहिए जो तत्काल फलदायी मालूम होने लगे; एक आदमी अगर सात दिन का संकल्प कर ले, तो फिर सात दिन में ही उसे पता चल जाए कि हुआ है बहुत कुछ, वह आदमी दूसरा हो गया है। अगर सात जन्मों में पता चले, तो अब कोई प्रयोग नहीं करेगा। पुराने दावे जन्मों के थे। वे कहते थे: इस जन्म में करो, अगले जन्म में फल मिलेंगे। वे बड़े प्रतीक्षापूर्ण धैर्यवान लोग थे। वे अगले जन्म की प्रतीक्षा में इस जन्म में भी साधना करते थे। अब कोई नहीं मिलेगा। फल आज न मिलता हो तो कल तक के लिए प्रतीक्षा करने की तैयारी नहीं है। ...इसलिए, मैं कह रहा हूं, आज प्रयोग हो और आज परिणाम होना चाहिए।’’ ओशो
अपने ध्यान के अनुभव को समृद्ध करें ...इस नये संस्करण के साथ।
हरेक के जीवन में ध्यान को शामिल किया जाना--सभी चिकित्सा शास्त्रियों, व्यावसायिक हस्तियों, खिलाड़ियों तथा कलाकारों द्वारा विस्तृत रूप से अनुमोदित किया गया है। ध्यान की इस पुस्तक में ध्यान क्या है इसकी पूरी समझ समाहित है, और ओशो द्वार आविष्कृत अथवा परिष्कृत ध्यान-विधियों की विस्तृत व्याख्या निहित है। इनमें ओशो की अनूठी सक्रिय ध्यान-विधियां शामिल हैं, जो आधुनिक युग की प्रतिदिन बढ़ती भाग-दौड़ जिसके कम होने के कोई आसार नहीं हैं--के कारण बढ़ते तनाव को दूर करने कि लिए विशेष रूप से निर्मित की गई हैं। लगभग अस्सी से अधिक विधियां हैं जिनके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता है, जब कि दूसरी विधियां ऐसी हैं जिनको आप दैनिक गतिविधियों में ही साध सकते हैं। अंततः ध्यान एक अंतर-प्रवाह हो जाता है जो हमारी श्वास की तरह मौजूद रहता है--एक विश्रांतिपूर्ण सजगता, जहां भी हम जाएं सदा हमारे साथ।"
अपने ध्यान के अनुभव को समृद्ध करें ...इस नये संस्करण के साथ।
हरेक के जीवन में ध्यान को शामिल किया जाना--सभी चिकित्सा शास्त्रियों, व्यावसायिक हस्तियों, खिलाड़ियों तथा कलाकारों द्वारा विस्तृत रूप से अनुमोदित किया गया है। ध्यान की इस पुस्तक में ध्यान क्या है इसकी पूरी समझ समाहित है, और ओशो द्वार आविष्कृत अथवा परिष्कृत ध्यान-विधियों की विस्तृत व्याख्या निहित है। इनमें ओशो की अनूठी सक्रिय ध्यान-विधियां शामिल हैं, जो आधुनिक युग की प्रतिदिन बढ़ती भाग-दौड़ जिसके कम होने के कोई आसार नहीं हैं--के कारण बढ़ते तनाव को दूर करने कि लिए विशेष रूप से निर्मित की गई हैं। लगभग अस्सी से अधिक विधियां हैं जिनके लिए अलग से समय देने की आवश्यकता है, जब कि दूसरी विधियां ऐसी हैं जिनको आप दैनिक गतिविधियों में ही साध सकते हैं। अंततः ध्यान एक अंतर-प्रवाह हो जाता है जो हमारी श्वास की तरह मौजूद रहता है--एक विश्रांतिपूर्ण सजगता, जहां भी हम जाएं सदा हमारे साथ।"
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