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Maro He Jogi Maro (मरौ हे जोगी मरौ)

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गोरख-वाणी पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं बीस OSHO Talks
ISBN-13: 978-81-7261-158-3
No. of Pages: 1
Cover: 1

Details

हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं,
मरौ वे जोगी मरौ, मरौ मरन है मीठा।
तिस मरणी मरौ, जिस मरणी गोरष मरि दीठा।।

गोरख कहते हैं: मैंने मर कर उसे देखा, तुम भी मर जाओ, तुम भी मिट जाओ। सीख लो मरने की यह कला। मिटोगे तो उसे पा सकोगे। जो मिटता है, वही पाता है। इससे कम में जिसने सौदा करना चाहा, वह सिर्फ अपने को धोखा दे रहा है। ऐसी एक अपूर्व यात्रा आज हम शुरू करते हैं। गोरख की वाणी मनुष्य-जाति के इतिहास में जो थोड़ी सी अपूर्व वाणियां हैं, उनमें एक है। गुनना, समझना, सूझना, बूझना, जीना...। और ये सूत्र तुम्हारे भीतर गूंजते रह जाएं:

हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यानं। अहनिसि कथिबा ब्रह्मगियानं।
हंसै षेलै न करै मन भंग। ते निहचल सदा नाथ के संग।।
ओशो