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Main Dharmikta Sikhata Hoon Dharm Nahin (मैं धार्मिकता सिखाता हूं धर्म नहीं)
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हमारे युग के सर्वाधिक मौलिक क्रांतिद्रष्टा ओशो की आधारभूत देशना ‘धर्म नहीं, धार्मिकता’ पर दी गईं २२ OSHO Talks के अंशों का एक अप्रतिम संकलन।
ISBN-13: 978-81-7261-049-4
No. of Pages: 1
Cover: 1
Details
"मेरी दृष्टि में तो धर्म एक गुण है, गुणवत्ता है; कोई संगठन नहीं, संप्रदाय नहीं। ये सारे धर्म जो दुनिया में हैं—और उनकी संख्या कम नहीं है, पृथ्वी पर कोई तीन सौ धर्म हैं—वे सब मुर्दा चट्टानें हैं। वे बहते नहीं, वे बदलते नहीं, वे समय के साथ-साथ चलते नहीं। और स्मरण रहे कि कोई चीज जो स्वयं निष्प्राण है, तुम्हारे किसी काम आने वाली नहीं। हां, अगर तुम उनसे अपनी कब्र ही निर्मित करना चाहो तो अलग बात है, शायद फिर वे पत्थर उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
धार्मिकता तुम्हारे हृदय की खिलावट है। वह तो स्वयं की आत्मा के, अपनी ही सत्ता के केंद्र बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने अस्तित्व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो, उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्न व्यक्ति होने लगते हो। तुम्हारे जीवन में जो अंधेरा था वह तिरोहित हो जाता है, और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी करते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होता है।"—ओशो
धार्मिकता तुम्हारे हृदय की खिलावट है। वह तो स्वयं की आत्मा के, अपनी ही सत्ता के केंद्र बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने अस्तित्व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो, उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्न व्यक्ति होने लगते हो। तुम्हारे जीवन में जो अंधेरा था वह तिरोहित हो जाता है, और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी करते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होता है।"—ओशो
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