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Ashtavakra Mahagita, Vol.9 (अष्‍टावक्र : महागीता—भाग नौ)

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अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 11 (81 से 91) OSHO Talks
ISBN-13: 978-81-7261-376-1
No. of Pages: 348
Cover: HARD COVER

Details

पहुंचना हो तो रुको
अष्टावक्र के इन सारे सूत्रों का सार-निचोड़ है--श्रवणमात्रेण। जनक ने कुछ किया नहीं है, सिर्फ सुना है। न तो कोई साधना की, न कोई योग साधा, न कोई जप-तप किया, न यज्ञ-हवन, न पूजा-पाठ, न तंत्र, न मंत्र, न यंत्र, कुछ भी नहीं किया है। सिर्फ सुना है। सिर्फ सुन कर ही जाग गए। सिर्फ सुन कर ही हो गया--श्रवणमात्रेण। अष्टावक्र कहते हैं कि अगर तुमने ठीक से सुन लिया, तो कुछ और करना जरूरी नहीं। करना पड़ता है, क्योंकि तुम ठीक से नहीं सुनते। तुम कुछ का कुछ सुन लेते हो। कुछ छोड़ देते हो, कुछ जा़ेड लेते हो; कुछ सुनते हो कुछ अर्थ निकाल लेते हो, अनर्थ कर देते हो। इसलिए फिर कुछ करना पड़ता है। कृत्य जो है, वह श्रवण की कमी के कारण होता है, नहीं तो सुनना काफी है। जितनी प्रगाढ़ता से सुनोगे, उतनी ही त्वरा से घटना घट जाएगी। देरी अगर होती है, तो समझना कि सुनने में कुछ कमी हो रही है। ऐसा मत सोचना कि सुन तो लिया, समझ तो लिया, अब करेंगे तो फल होगा। वहीं बेईमानी कर रहे हो तुम। वहां तुम अपने को फिर धोखा दे रहे हो। अब तुम कह रहे हो कि अब करने की बात है, सुनने की बात तो हो गई।
ओशो