This is a demo store. No orders will be fulfilled.

Ashtavakra Mahagita, Vol.5 (अष्‍टावक्र : महागीता—भाग पांच)

₹500.00
In stock
अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 10 (41 से 50) OSHO Talks
ISBN-13: 978-81-7261-372-3
No. of Pages: 318
Cover: HARD COVER

Details

सहज ज्ञान का फल है तृप्ति
यह भी समझने जैसा है--स्वच्छेन्द्रिय! फर्क को खयाल में लेना। अक्सर तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं: ‘इंद्रियों की दुश्मनी। तोड़ो, फोड़ो, इंद्रियों को दबाओ, मिटाओ! किसी भांति इंद्रियों से मुक्त हो जाओ!’ अष्टावक्र का वचन सुनते हो: स्वच्छेन्द्रिय! इंद्रियां स्वच्छ हो जाएं, और भी संवेदनशील हो जाएंगी। ज्ञान का फल! यह वचन अदभुत है। नहीं, अष्टावक्र का कोई मुकाबला मनुष्य-जाति के इतिहास में नहीं है। अगर तुम इन सूत्रों को समझ लो तो फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता है। इन एक-एक सूत्र में एक-एक वेद समाया है। वेद खो जाएं, कुछ न खोएगा; अष्टावक्र की गीता खो जाए तो बहुत कुछ खो जाएगा। स्वच्छेन्द्रिय! ज्ञान का फल है: जिसकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं; जिसकी आंखें साफ हैं!
ओशो