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Ashtavakra Mahagita, Vol.3 (अष्टावक्र : महागीता—भाग तीन)
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अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks में से 10 (21 से 30) OSHO Talks
ISBN-13: 978-81-7261-370-9
No. of Pages: 308
Cover: HARD COVER
Details
स्वतंत्रता की झील: मर्यादा के कमल
महागीता का मौलिक संदेश एक है कि चुनाव संसार है। अगर तुमने संन्यास भी चुना, तो वह भी संसार हो गया। जो तुमने चुना, वह परमात्मा का नहीं है; जो अपने से घटे, वही परमात्मा का है। जो तुमने घटाना चाहा, वह तुम्हारी योजना है; वह तुम्हारे अहंकार का विस्तार है। तो महागीता कहती है: तुम चुनो मत--तुम सिर्फ साक्षी बनो। जो हो, होने दो। बाजार हो तो बाजार; अचानक तुम पाओ कि चल पड़े जंगल की तरफ, चल पड़े--नहीं चुनाव के कारण; सहज स्फुरणा से--तो चले जाओ। सहज स्फुरणा से चले जाना जंगल एक बात है; चेष्टा करके, निर्णय करके, साधना करके, अभ्यास करके जंगल चला जाना बिलकुल दूसरी बात है। महागीता कहती है: चुनो मत! क्योंकि चुनोगे तो अहंकार से ही चुनोगे न? चुनोगे तो ‘मैं’ करने वाला हूं--कर्ता हो जाओगे न! महागीता कहती है: न कर्ता, न भोक्ता--तुम साक्षी रहो। ओशो
महागीता का मौलिक संदेश एक है कि चुनाव संसार है। अगर तुमने संन्यास भी चुना, तो वह भी संसार हो गया। जो तुमने चुना, वह परमात्मा का नहीं है; जो अपने से घटे, वही परमात्मा का है। जो तुमने घटाना चाहा, वह तुम्हारी योजना है; वह तुम्हारे अहंकार का विस्तार है। तो महागीता कहती है: तुम चुनो मत--तुम सिर्फ साक्षी बनो। जो हो, होने दो। बाजार हो तो बाजार; अचानक तुम पाओ कि चल पड़े जंगल की तरफ, चल पड़े--नहीं चुनाव के कारण; सहज स्फुरणा से--तो चले जाओ। सहज स्फुरणा से चले जाना जंगल एक बात है; चेष्टा करके, निर्णय करके, साधना करके, अभ्यास करके जंगल चला जाना बिलकुल दूसरी बात है। महागीता कहती है: चुनो मत! क्योंकि चुनोगे तो अहंकार से ही चुनोगे न? चुनोगे तो ‘मैं’ करने वाला हूं--कर्ता हो जाओगे न! महागीता कहती है: न कर्ता, न भोक्ता--तुम साक्षी रहो। ओशो
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