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Ashtavakra Mahagita, Vol.1 to 9 (अष्टावक्र : महागीता—भाग एक से नौ)
₹3,450.00
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अष्टावक्र-संहिता के सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित पुणे में हुई सीरीज के अंतर्गत दी गईं 91 OSHO Talks
ISBN-13: 978-81-7261-377-8
Cover: HARD COVER
Details
जनक और अष्टावक्र के बीच जो महागीता घटी है, उसमें साधक की बात ही नहीं है; उसमें सिद्ध की ही घोषणा है; उसमें दूसरे तट की ही घोषणा है। वह आत्यंतिक महागीत है। वह उस सिद्धपुरुष का गीत है, जो पहुंच गया; जो अपनी मस्ती में उस जगत का गान गा रहा है, स्तुति कर रहा है। इसीलिए तो जनक कह सके: ‘अहो अहं नमो मह्यम्! अरे, आश्चर्य! मेरा मन होता है, मुझको ही नमस्कार कर लूं!’
ओशो
अष्टावक्र की यह महागीता है। इससे शुद्धतम वक्तव्य सत्य का कभी नहीं दिया गया और कभी दिया भी नहीं जा सकता। फिर भी तुम्हें याद दिला दूं, इन शब्दों में मत उलझ जाना। ये शब्द खाली हैं। ये बड़े प्यारे हैं--इसलिए नहीं कि इनमें सत्य है; ये बड़े प्यारे हैं, क्योंकि जिस आदमी से निकले हैं उसके भीतर सत्य रहा होगा; ये बड़े प्यारे हैं, क्योंकि जिस हृदय से उमगे हैं, जहां से उठे हैं, वहां सत्य का आवास रहा होगा।
ओशो
ओशो
अष्टावक्र की यह महागीता है। इससे शुद्धतम वक्तव्य सत्य का कभी नहीं दिया गया और कभी दिया भी नहीं जा सकता। फिर भी तुम्हें याद दिला दूं, इन शब्दों में मत उलझ जाना। ये शब्द खाली हैं। ये बड़े प्यारे हैं--इसलिए नहीं कि इनमें सत्य है; ये बड़े प्यारे हैं, क्योंकि जिस आदमी से निकले हैं उसके भीतर सत्य रहा होगा; ये बड़े प्यारे हैं, क्योंकि जिस हृदय से उमगे हैं, जहां से उठे हैं, वहां सत्य का आवास रहा होगा।
ओशो
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